उसका जन्म हो चुका था..........पर वो संसार के लिया अदृश्य था...........वो जीवन के अन्य रूप की परतों के भीतर छुपा था..........वो एक बीज था। एक विशाल वृक्ष के ढेरों फलों में से एक के भीतर छुपा..........जीवन का आरंभ..........एक बीज। सब कुछ अनोखा था उसके लिए, वो फल की सुरक्षा में प्रतिदिन बढ़ रहा था.........उसका जीवन प्रत्येक दिन के साथ विकसित हो रहा था।
जैसे हर जीव अपने भविष्य से अनजान है, उसे भी अपने आने वाले दिनों का कुछ ज्ञान न था। पर कुछ तो था जो बदल रहा था। बीज हैरान था..........जिस सरसता में वो जी रहा था वो हर दिन के साथ कम हो रहीथी........शुष्कता बढ़ती जा रही थी..........वो सिमटता जा रहा था..........समझ नहीं पा रहा था की क्या हो रहा है और क्या होने जा रहा है..........हर नए दिन के साथ आने वाले दिन की प्रतीक्षा करता रहा।
एक दिन वो हो गया जो उसने सोचा भी न था। फल वृक्ष से अलग हो गया..........गिरते समय शाख से टकराया और टूट गया.........बीज बाहर आगया........उसका आवरण , उसका कवच छूट गया..........हवा के वेग से वो इधर उधर उड़ने लगा.........घबरा गया, डर के मारे और भी सिकुड़ गया..........उसकी रंगत भी भय से पीली पड़ गई। हवा के आगे उसकी एक न चली, वो जहाँ चाहती उसे उड़ा ले जा रही थी, कभी दायें कभी बाएँ कभी ऊपर कभी नीचे..........फ़िर वो एक ही स्थान पर देर तक गोल गोल घूमता रहा..........हवा का वेग कम हुआ और बीज धरती पर गिर गया। वो इतना डर चुका था कि दम साधे पड़ा रहा..........अपनी आँखें भींचे.........अपना शरीर सिकोड़े..........धीरे धीरे उसपर मिट्टी कि परतें पड़ती गयीं..........वो अन्धकार के गर्त में दब सा गया..........एक निर्जीव की भांति जाने कब तक सोता रहा।
फ़िर आकाश में मेघ छाये..........जोर से बिजली कड़की.........मूसलाधार बरसात हुई..........पानी बरसा तो बरसता ही रहा...........पूरी धरती ही भीग गई...........पानी रिसता हुआ मिटटी की परतों को पार कर बीज तक जा पहुँचा। बीज उससे सराबोर हो गया.........उसमें ऊर्जा का संचार हुआ..........अपने अस्तित्व का अहसास हुआ..........धीरे से सर उठाया मिटटी कि परतों को धीरे से खिसका कर बाहर झाँका..............यह क्या!!!!!!!!! इतना उजाला.........सब कुछ धुला धुला............उसके भीतर हलचल होने लगी.........पुराने आवरण टूट गए............भीतर नए जीवन का आरम्भ होने लगा.............नयी कोपलें बाहर आ गयी..........धूप में नहा कर चटख हरा रंग ओढ़ लिया। चारों और देखा तो उसके जैसे ढेरों नए जीवन आकार ले रहे थे............उसका आत्मविश्वास और द्रढ़ होगया...........उसने अपनी जड़ों को और फैलाया, धरती को कस कर थाम लिया। अब वो बीज से एक पौधे में बदल चुका था।
ठंडी हवा का एक झोंका आया.......उसने लहरा कर अपने नए जीवन का स्वागत किया...........अब वो तैयार था.............अनेक रूपों और पड़ावों से होता हुआ कुछ नए बीजों को जन्म देने के लिए..............इस जीवन चक्र को दोहराने के लिए।
जैसे हर जीव अपने भविष्य से अनजान है, उसे भी अपने आने वाले दिनों का कुछ ज्ञान न था। पर कुछ तो था जो बदल रहा था। बीज हैरान था..........जिस सरसता में वो जी रहा था वो हर दिन के साथ कम हो रहीथी........शुष्कता बढ़ती जा रही थी..........वो सिमटता जा रहा था..........समझ नहीं पा रहा था की क्या हो रहा है और क्या होने जा रहा है..........हर नए दिन के साथ आने वाले दिन की प्रतीक्षा करता रहा।
एक दिन वो हो गया जो उसने सोचा भी न था। फल वृक्ष से अलग हो गया..........गिरते समय शाख से टकराया और टूट गया.........बीज बाहर आगया........उसका आवरण , उसका कवच छूट गया..........हवा के वेग से वो इधर उधर उड़ने लगा.........घबरा गया, डर के मारे और भी सिकुड़ गया..........उसकी रंगत भी भय से पीली पड़ गई। हवा के आगे उसकी एक न चली, वो जहाँ चाहती उसे उड़ा ले जा रही थी, कभी दायें कभी बाएँ कभी ऊपर कभी नीचे..........फ़िर वो एक ही स्थान पर देर तक गोल गोल घूमता रहा..........हवा का वेग कम हुआ और बीज धरती पर गिर गया। वो इतना डर चुका था कि दम साधे पड़ा रहा..........अपनी आँखें भींचे.........अपना शरीर सिकोड़े..........धीरे धीरे उसपर मिट्टी कि परतें पड़ती गयीं..........वो अन्धकार के गर्त में दब सा गया..........एक निर्जीव की भांति जाने कब तक सोता रहा।
फ़िर आकाश में मेघ छाये..........जोर से बिजली कड़की.........मूसलाधार बरसात हुई..........पानी बरसा तो बरसता ही रहा...........पूरी धरती ही भीग गई...........पानी रिसता हुआ मिटटी की परतों को पार कर बीज तक जा पहुँचा। बीज उससे सराबोर हो गया.........उसमें ऊर्जा का संचार हुआ..........अपने अस्तित्व का अहसास हुआ..........धीरे से सर उठाया मिटटी कि परतों को धीरे से खिसका कर बाहर झाँका..............यह क्या!!!!!!!!! इतना उजाला.........सब कुछ धुला धुला............उसके भीतर हलचल होने लगी.........पुराने आवरण टूट गए............भीतर नए जीवन का आरम्भ होने लगा.............नयी कोपलें बाहर आ गयी..........धूप में नहा कर चटख हरा रंग ओढ़ लिया। चारों और देखा तो उसके जैसे ढेरों नए जीवन आकार ले रहे थे............उसका आत्मविश्वास और द्रढ़ होगया...........उसने अपनी जड़ों को और फैलाया, धरती को कस कर थाम लिया। अब वो बीज से एक पौधे में बदल चुका था।
ठंडी हवा का एक झोंका आया.......उसने लहरा कर अपने नए जीवन का स्वागत किया...........अब वो तैयार था.............अनेक रूपों और पड़ावों से होता हुआ कुछ नए बीजों को जन्म देने के लिए..............इस जीवन चक्र को दोहराने के लिए।
22 comments:
waah shikha jee, bahut hee umdaa, bilkul naya andaaj aur nayee baat, beej ke bahane jeevan ke darshan ko tatolaa aapne achha laga, likhtee rahein....
bahuta achchaa.
शिखा जी ,बहुत ही अच्छी कहानी लिखी है आपने ,छोटी परन्तु प्रभावपूर्ण .
नमस्कार,
इसे आप हमारी टिप्पणी समझें या फिर स्वार्थ। यह एक रचनात्मक ब्लाग शब्दकार के लिए किया जा रहा प्रचार है। इस बहाने आपकी लेखन क्षमता से भी परिचित हो सके। हम आपसे आशा करते हैं कि आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे कि हमने आपकी पोस्ट पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की।
आपसे अनुरोध है कि आप एक बार रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को देखे। यदि आपको ऐसा लगे कि इस ब्लाग में अपनी रचनायें प्रकाशित कर सहयोग प्रदान करना चाहिए तो आप अवश्य ही रचनायें प्रेषित करें। आपके ऐसा करने से हमें असीम प्रसन्नता होगी तथा जो कदम अकेले उठाया है उसे आप सब लोगों का सहयोग मिलने से बल मिलेगा साथ ही हमें भी प्रोत्साहन प्राप्त होगा। रचनायें आप shabdkar@gmail.com पर भेजिएगा।
सहयोग करने के लिए अग्रिम आभार।
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
शब्दकार
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
बीज बनाता पेड़ को पेड़ बनाये बीज।
परिवर्तन के चक्र में बदलेगा हर चीज।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahut hi sunder,beej katha bahut pasand aayi.
रुचिकर लेखन है
---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
शिखा जी बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने अति भावपूर्ण बेहतरीन
जीवन चक्र का आपने बडा सही चित्रण किया. हमारा जीवन भी ऐसा ही है. कितनी बार मंझदार मे थपेडे खाता हुआ इधर उधर डोलता है.
पर जैसे बीज ने हवा के साथ अपने को छोड दिया और अंतत: जमीन पागया उसी तरह से जीवन को भी तेज हवाओं के सामने लडने की बजाये ईश्वर के हवाले कर दिया जाये तो अंतत: जमीन मिल ही जाती है.
पेड से टूटकर और जमीन मिलने तक की अवस्था ऐसी ही होती है कि उसमे कोई कुछ नही अक्र सकता. सब प्रभु हाथ होता है.
रामराम.
जीवन क्रम का सुन्दर,सिलसिलेवार चित्रण......सुन्दर
नए अंदाज़ में नए, नए सब्जैक्ट पर नई कहानी। बहुत ही ज़बरदस्त लगी आपकी छोटी कहानी। लिखते रहिएगा मैं पढ़ने आता रहूंगा।
bhut sundar beej ki atm katha hai
abhar
shikhaji sarishati srijan kaa achha khaaka kheencha hai badhaiek laghukathaa me jevan chakar ka saransh
how nicely narreted
achcha likha hai aapne....
very nice blog.....
i have made a blog..
plz visit us my blog...
money saving....
http://savingsonline.blogspot.com/
thank you..
nice..
khoobsurat..
shukriya shikha ji .
क्यूँ आप समझतेहैं निजको निर्बल औरनिसहायभला
जो आग छुपी है हृदय में उसको थोड़ा सा और जला
निजता को बचाए रखने से मिलता कोई विस्तारनहीं
बीज बिना माटीमिले कभी वृक्ष हुआ क्या बताओभला
नए जीवन का स्वागत
beej ke jeewan ke utar chadhav ka badi khoobsoorati se varnan kiya hai.
waah!!!! shabdon ko jodne ka aapka andaaj niraala hai...aapka lekh padha . bahut hi sundar laga.. aage bhi likhiye, meri shubhkaamnaayen aapke saath hain...
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