फोनपरतुम्हारेवोशब्द...........मैंअबथकगयाहूँ...........हारगयाहूँ..........दिलचाहताहैइसजिंदगीकोही ख़त्मकरदूं...........येक्याकहगएतुम..........तुमऔरऐसीनिराशाकीबातें..........तुम्हारेमुंहसेऐसीबातेंमुझेबर्दाश्तनहींहोती.........परिस्थितियाँचाहेजैसीहों...........हालातचाहेजैसेरहेहों........परमैंनेतुमकोहमेशाजीवनउर्जासेभराहीदेखाहै........फिरतुम्हारायहरूपमैंकैसेबर्दाश्तकरूँ..........तुमजिसनेमुझेजीनेकीराहदिखाईआजखुदजीवनसेपलायनकीबातकररहेहो...........तुमकोऐसासोचनाभीशोभानहींदेता.........मुझे पताहैतुमजीवनकेकिनपथरीलेरास्तोंसेगुजरकरआयेहो...........तुमनेजीवनमेंबड़ेउतारचढ़ावदेखे हैं...........येतुम्हारेजीवनकेअनुभवहीतोहैंजोजिन्होंनेतुमकोइतनासंवेदनशीलबनादियाहै...........एकबारबसएकबारपीछेमुड़करदेखो..........एकबारपीछेपलटकरदेखो.........ज़राअपनीज़िंदगीकीकिताबकोपलटकरतोदेखो.........होसकताहैकितुमकोइसमेंऐसाबहुतकुछदिखेजोतुमनेखोदियाहै..........यावोजोतुम्हेनहींमिलसकाहै.........परजितना मैंतुमकोजानतीहूँ..........येकथितसफलताएंतुम्हारामकसदकभीनहींरही..........तुमकोकभीइसअंधीदौड़मेंशामिलनहींदेखामैंने...........फिरआजऐसाक्यूँ.........ज़राएकबार अपनीओरध्यानसेदेखो........क्यातुम्हेनहींलगतातुमनेवोपायाहै............जिसेपानेकीज़रुरतभीलोगोंको तबसमझमेंआतीहै.............जबउनकेपासकुछपानेकेलिएवक़्तहीनहींबचाहोता.........एकबारखुदपर अपनेदिलपरनज़रतोडालो..........औरखुदअपनीतुलनाकरोअपनेआपसे...........जोतुमपहलेथेऔरजोतुमआजहो...........एकइंसानकेतौरपरतुमआजकहाँहो.........बोलोतुमकैसेकहसकतेहोकितुमहारगएहो..........तुमजोखुदकोजीतचुकेहोवोहारगया !!!! कैसे ?? इसनिराशासेबाहरआओ........उनकोमतदेखोजोतुम्हारीओरनहींदेखते............. उनकोदेखोजोतुम्हारीओरहीदेखरहेहैं...........उनकेबारेमेंसोचोजोतुम्हारेभरोसेचलरहेहैं...........मेरेबारेमेंसोचो.........तुम्हे इसहालमेंदेखकरमैंकैसेजिऊँ.........तुमटूटगएतोमैंतोबिखरहीजाऊँगी..........नहींतुमऐसानहींकरसकते..........तुमनहींहारसकते........तुमनहींटूटसकते..........तुमकोइनअंधेरोंसेबाहरआनाहीहोगा...........मुझसेवादाकरोतुमइसहताशासेलड़करबाहरआओगे.........मुझसेवादाकरोतुमफिरकभीयूँहारनहींमानोगे..........मुझसेवादाकरोकिअगलीबारजबमिलोगेतोहोठोंपरवहीमुस्कानहोगीऔरदिलमेंवहीजोश..........देखोतोतुमजोमुझेजिंदगीकेनितनएफलसफेसमझातेरहतेहो.........आजमुझेतुमकोकुछसमझानापड़रहाहै..........न न फिर से ऐसा नकरना............फिर कभी ऐसा न कहना........तुम हमेशा खुश रहो........हमेशा मुस्कराते रहो..........हमेशा मेरे साथरहो........मेरे रहो.......रहोगे न.......वादा करो.........
समयकापहियाऔरआगेबढ़ा..........नएनएलोगमिलेनएरिश्तेजुड़े...........अबवोहंसतीथीबोलतीथी...........सजतीसंवारतीभीथी..........उसकीछविएकखुशहालऔरहंसमुखलड़कीकीथी...........लोगउसकेसाथबड़ीजल्दीघुलमिलजाते........वोभीउनकोअपनासमझउनपरअपनीजानलुटातीरहती.........अबउसकेआसपासलोगोंकीभीड़थी............परउसभीड़मेंउसकोसमझनेवालाअबभीकोईनहींथा.........कोईभीऐसानथाजोउसमेंउसकोकेवलउसकोदेखता.......सबअपनेअपनेनज़रिएअपनीअपनीज़रुरतकीनज़रसेउसकोदेखतेऔरसमझतेथे...........वोभीउन्हेंयहीसमझनेदेती..........वोअबभीअकेलीथी..........भीतरकीघुटनअबभीदिलकीगहराइयोंमेंजमीथी..........उसकेदिलमेंछुपेइसदर्दकोकोईनहींजानताथा.........किसीकोकभीकोईभनकहीनहुईकिइसहँसतेमुस्करातेचेहरेकेपीछेआंसुओंकेसमंदरछुपेहैं.......... जिन्दगी के अनुभवों ने उसको बहुत संवेदनशील बना दिया...........कोई जरूरत में है.........किसी को कोई तकलीफ है........उसकी नज़रों से बच नहीं पता..........और जब उसकी नज़र पड़े जाए फिर कोई आभावों में रह नहीं सकता..........उससे जो बन पड़ता वो करती.........जो खुद नहीं कर पाती उसके लिए दूसरों से मदद माँग लेती..........उसकी शख्सियत के इस पहलू ने उसको बड़ा नाम दिया.............बहुत लोग उसके करीब आते गए........सब अपने अपने तरीके से उससे अपनी भावनाए अपना प्यार जताते..........कोई भाई बन के खड़ा था तो कोई बहन...........कोई उसको अपना दोस्त कहता तो कोई उसको माँ का दर्जा देता..........जिन्दगी खुशहाल लगने लगी.............पर क्या जो दिख रहा था वो सच था.......... नीयति कभी उसके लिए रहमदिल साबित न हुई..............एक दिन हकीकत के पार का सच सामने आ ही गया...........एक दिन जब फिर से उसकी अच्छाई पर सवाल उठाये गए............उसकी नीयत पर शक किया गया..........तब उसने अपने चारों ओर अपनों की भीड़ की ओर उम्मीद से देखा...........जब उसको लोगों कीजरूरतपड़ीतोतो उसको ये माँ बहन या दोस्त कहने वाले कहीं नज़र नहीं आये.........
वो सब उसी भीड़ में गुम हो गए जो तमाशाई बन के उसके चारों ओर खड़ी थी..........उस भीड़ में उसका कोई नहीं इस बात का गम तो कम था जो बात दिल में नश्तर सी चुभती थी वो यह कि जिन पर वो दिल ओ जान लुटाती रही वो उसी भीड़ का हिस्सा बने नज़र आ रहे थे...............पीड़ा सहनशक्ति की सीमा लाँघ चुकी थी............वो जो सबके जीवन में रंग भरती रही........सब के दुःख सुख बाँटती रही..........आज दर्द के सागर में डूब गयी थी.............रिश्तों पर से उसका विश्वास उठगया..........उम्मीदों ने उसका साथ छोड़ दिया..........अकेलेपन से जयादा भयावह अकेलेपन का एहसास होता है...............वो इसी एहसास से घबरा गयी...........दिल और दिमाग के बीच..........देखने और समझने के बीच के समन्वय बिगड़ गए...........लोगों और आवाजों से परिचय ख़त्म हो गया..........वो बिलकुल खामोश होगयी..........चुपचाप घंटों शून्य में जाने क्या देखती रहती..........वो जो कभी लोगों के लिए ख़ुशी और उल्लास का पर्याय थी............आज गम में अन्धकार में खो गयी............ईश्वर इतना निर्दयी कैसे हो सकताहै............क्या इस दुनिया में उसका हाथ थामने वाला कोई नहीं आया.........
आखिरकार उस विधाता का दिल भी पसीज ही गया..........उसके जीवन में एक शख्स आशा की किरण बन कर आया...........उसने लड़की को अन्धकार की गर्तों से बाहर निकला..........उसका हाथ थाम कर उसे जिन्दा होने का एहसास दिलाया.........दुनिया के आगे उसकी ढाल बन कर खड़ा हो गया...........उसके खिलाफ बोलने वालों के आगे उसकी अच्छाइयां गिना कर उन लोगों को खामोश कर दिया...........उसके खुले दिल से किये गए कामों को याद दिला कर उनकी जबानों पर ताले जड़ दिए..........उसमें छुपे हुनर से उसकी फिर से पहचान कराई...............धीरे धीरे उस में फिर से आत्मविश्वास की बेल जड़ पकड़ने लगी..........उसके चेहरे पर फिर से रौनक लौटने लगी..........अकेलेपन का बोझ मिटने लगा...........जीवन में ढेरों रंग बिखरने लगे............खुशियों की बरसातें होने लगी...........उसने अपने आप को उस शख्स की नज़र से देखा तो पहली बार खुद में छुपी अपनी ही असल शख्सियत से रूबरू हुई...........खुद को पहली बार पहचाना...........उसके साथ ने उसमें नयी जान डाल दी...............
अब वो उसके साथ अपने संसार में खुश है..........दोनों के बीच का ये खूबसूरत रिश्ता दिनों दिन और भी निखरता जा रहा है..........वो अब खुश रहती है...........घुटन भारी जिन्दगी बहुत पीछे छूट गयी है............दुःख तकलीफों की बातें पुरानी हो गयी हैं...........खुले दिल से खिलखिला कर हंसती है वो.............जिन्दगी को सच में जीने लगी है अब.............वो लड़की.......
लौट आओ कहाँ हो............. तुम बिन मेरी जिंदगी कितनी रीती रीती सी है...........कोई रंग नहीं कोई रौनक नहीं...............सब फीका सा बेमानी सा लगता है.............तुम कहाँ चले गए हो.........क्यूँ रूठे हो..........मुझसे यूँ रूठने की तुम्हारी आदत तो बड़ी पुरानी है............ज़रा ज़रा सी बात पर रूठ जाना और फिर मेरा तड़प कर तुमको मानना............यह सिलसिला उतना ही पुराना है जितनी तुम्हारी मेरी पहचान...............पर इस बार यूँ रूठ जाओगे मैंने सोचा भी न था...........एक बार मान जाओ.........एक बार आजाओ..........आके बता तो जाओ कि मेरी भूल क्या है............मुझसे क्या गलती हो गयी जो तुमने मुझे यूँ अपने से दूर रहने की सज़ा देदी........कितने साल हमने साथ साथ गुजारे हैं..............तुमको मेरी छोटी छोटी बातों का मेरी हर जरूरत का कितना ख्याल रहता था..........तुमको पुकार भी न पाती थी और तुम मेरे सामने होते थे...............तुम थे तो कभी जिंदगी में किसी और की ज़रुरत ही नहीं पड़ी..........कभी किसी को एहमियत ही नहीं दी...............कभी किसी और से जुडी ही नहीं.............. मुझको तुम्हारी आदत हो चुकी है...........कि अब तुम्हारे बिना जीना बड़ा ही दुश्वार लगता है............तुम ही तो मेरी जिंदगी कि धुरी थे.............. पर आज तुम मुझे यूँ छोड़ कर क्यूँ चले गए.............क्या तुमको मेरी याद नहीं आती...........क्या तुमको अब मेरा ख्याल नहीं................क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल होगा..........हमारा रिश्ता इतना कमजोर तो कभी न था कि हालात की एक हलकी सी आंधी उसको यूँ बिखेर दे.........वो जादूगर की कहानी याद हैं न जिसकी जान उसके तोते में रहती थी ..........तुम जानते हो न कि बस वैसे ही तुम में मेरी जान बसती है..........अब जब तुम नहीं हो तो मैं भी बेजान सी हो गयी हूँ ........तुम्हारे बिना मैं कितनी अकेली हो गयी हूँ...........तुम जानते हो न कि मेरे दिल और मेरी जिंदगी में तुम्हारी क्या जगह है...........फिर तुम ऐसा क्यूँ कर रहे हो..........क्यूँ मुझसे इतनी दूर चले गए हो..........कहाँ हो वापस चले आओ.........लौट आओ...........