Sunday, December 19, 2010

वो लड़की.......

लड़की बन कर पैदा होना ही शायद. एक अभिशाप है जन्म से ही नीयति कदम कदम पर परीक्षाओं के जाल बिछाती चली जाती है......जिन्दगी हर मोड़ पर ढेरों लक्ष्मणरेखाएं खींच देती है......इन सब से जूझते हुए अपने स्व को बचा कर जीना ही औरत का भाग्य है

वो भी जिन्दगी के इस खेल से अछूती रह सकी......वो......वो लड़की!!!

उसका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ.........बाप दादा का नाम दूर दूर तक मशहूर था.......उसका जन्म माँ पिताजी की बरसों की प्रार्थनाओं का फल था इसीलिए उसके लड़की होने पर यूँ तो किसी ने प्रतिक्रिया की पर पर वो बेटा तो थी...........वो थी माँ पिताजी की लाडली.......जो चाहती मिल जाता.......पर जीती नज़रों के सख्त पहरे में थी...........शहर के नामी स्कूल में नाम लिखाया गया........जिन्दगी घर से स्कूल और स्कूल और घर के बीच सीमित रही........न दोस्तों के घर जाने की छूट ही ही उनको घर बुलाने की..........सच पूछो तो उसको दोस्त बनाने की ही इजाज़त थी......बस उसके गुड्डे गुडिया और खिलौने ही उसके संगी साथी थे........अक्सर वो अपने इस अकेलेपन से घबराकर रो पड़ती ........

समय
गुजरता गया........खिलौनों से खेलने की उम्र पीछे छूट गयी...........माँ घर गृहस्थी के काम सिखाने लगी..........घर में बैठे बैठे ढेरों हुनर हाथों में आगये........पर अकेलापन अब भीही.........अब उसके साथी बदल गए.........गुड्डे गुड़ियाँ अलमारी की शोभा बन गए और हाथों में किताबें और कलम आगये.........पढने लिखने के नए शौक ने उसमें कुछ संतोष भर दिया.........पर ह्रदय और ह्रदय की भावनाएं कब किसी बंधन को मानती हैं...........डरते झिझकते उसने भी अपने घर की चहारदीवारी के पार कि दुनिया में बिखरे रंगों को देखने कि कोशिश की..........पर वो तो ठहरी लड़की........उसकी नन्ही सी चाहत पूरा होना भी उसको बदा था..........जाने किसकी बुरी नज़र उसको लगी जो निर्दोष पर ऊँगली उठा दी गयी...........वो कुछ समझ भी पायी उससे पहले ही उसपर तमाम बंदिशों का बोझ लाद दिया गया.............पंछी के उड़ने से पहले की पंख काट दिए गए...........फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया..........जीवन के इस आघात ने उसको तोड़ कर रख दिया............अंजानो ने जो किया उसका ज्यादा गिला नहीं था उसे........पर चहारदीवारी की कैद में भी उसकी चौकीदारी करती अपनों की नज़रें वो बर्दाश्त कर पाती...........उसकी आत्मा लहूलुहान हो गयी.............पर किसी के पास उसकी पीड़ा का कोई मरहम था..........

तकलीफें जब कुछ कम हुई तो उसने जीने के नए रास्ते खोजने शुरू किये.........बड़े मान मनुहार के बाद घर से ही पढाई पूरी करने की इजाज़त मिली.........सब कुछ भुला कर अपने आप को किताबों में झोंक दिया..........उसकी मेहनत और नतीजों ने माँ पिताजी का मन कुछ पिघला दिया.........आगे पढ़ाई की राह मिल गयी.........पर इस सब ने उसको इतना बदल दिया कि वो समय से पहले ही बड़ी हो गयी.........अपने हमउम्र के बीच भी सदा संजीदा ही दिखती......... साज सिंगार ही कोई उत्साह............ऐसा लगता जैसे अपने आप को ढो रही है...........

समय के साथ हर किसी की सच्चाई सामने आही जाती है..........माता पिता के सामने उन लोगों की हकीकत भी आगई जिनके बुने ताने बाने में वो उलझ गए थे.........जिनकी बातों में आकर उन्होंने अपनी ही बेटी पर सवाल उठा दिए थे.........और अपनी उस बेटी ही सच्चाई भी उनकी आँखों के सामने थी..........जिसने चुपचाप उन सभी गलतियों की सजा भुगती जो उसने कभी करी ही नहीं थी..........जो बीत चुका था उसको बदला तो नहीं जा सकता था..........

समय
का पहिया और आगे बढ़ा..........नए नए लोग मिले नए रिश्ते जुड़े...........अब वो हंसती थी बोलती थी...........सजती संवारती भी थी..........उसकी छवि एक खुशहाल और हंसमुख लड़की की थी...........लोग उसके साथ बड़ी जल्दी घुलमिल जाते........वो भी उनको अपना समझ उनपर अपनी जान लुटाती रहती.........अब उसके आस पास लोगों की भीड़ थी............पर उस भीड़ में उसको समझने वाला अब भी कोई नहीं था.........कोई भी ऐसा था जो उसमें उसको केवल उसको देखता.......सब अपने अपने नज़रिए अपनी अपनी ज़रुरत की नज़र से उसको देखते और समझते थे...........वो भी उन्हें यही समझने देती..........वो अब भी अकेली थी..........भीतर की घुटन अब भी दिल की गहराइयों में जमी थी..........उसके दिल में छुपे इस दर्द को कोई नहीं जानता था.........किसी को कभी कोई भनक ही हुई कि इस हँसते मुस्कराते चेहरे के पीछे आंसुओं के समंदर छुपे हैं..........

जिन्दगी के अनुभवों ने उसको बहुत संवेदनशील बना दिया...........कोई जरूरत में है.........किसी को कोई तकलीफ है........उसकी नज़रों से बच नहीं पता..........और जब उसकी नज़र पड़े जाए फिर कोई आभावों में रह नहीं सकता..........उससे जो बन पड़ता वो करती.........जो खुद नहीं कर पाती उसके लिए दूसरों से मदद माँग लेती..........उसकी शख्सियत के इस पहलू ने उसको बड़ा नाम दिया.............बहुत लोग उसके करीब आते गए........सब अपने अपने तरीके से उससे अपनी भावनाए अपना प्यार जताते..........कोई भाई बन के खड़ा था तो कोई बहन...........कोई उसको अपना दोस्त कहता तो कोई उसको माँ का दर्जा देता..........जिन्दगी खुशहाल लगने लगी.............पर क्या जो दिख रहा था वो सच था..........

नीयति
कभी उसके लिए रहमदिल साबित न हुई..............एक दिन हकीकत के पार का सच सामने आ ही गया...........एक दिन जब फिर से उसकी अच्छाई पर सवाल उठाये गए............उसकी नीयत पर शक किया गया..........तब उसने अपने चारों ओर अपनों की भीड़ की ओर उम्मीद से देखा...........जब उसको लोगों की जरूरत पड़ी तो
तो उसको ये माँ बहन या दोस्त कहने वाले कहीं नज़र नहीं आये.........

वो सब उसी भीड़ में गुम हो गए जो तमाशाई बन के उसके चारों ओर खड़ी थी..........उस भीड़ में उसका कोई नहीं इस बात का गम तो कम था जो बात दिल में नश्तर सी चुभती थी वो यह कि जिन पर वो दिल ओ जान लुटाती रही वो उसी भीड़ का हिस्सा बने नज़र आ रहे थे...............पीड़ा सहनशक्ति की सीमा लाँघ चुकी थी............वो जो सबके जीवन में रंग भरती रही........सब के दुःख सुख बाँटती रही..........आज दर्द के सागर में डूब गयी थी.............रिश्तों पर से उसका विश्वास उठगया..........उम्मीदों ने उसका साथ छोड़ दिया..........अकेलेपन से जयादा भयावह अकेलेपन का एहसास होता है...............वो इसी एहसास से घबरा गयी...........दिल और दिमाग के बीच..........देखने और समझने के बीच के समन्वय बिगड़ गए...........लोगों और आवाजों से परिचय ख़त्म हो गया..........वो बिलकुल खामोश होगयी..........चुपचाप घंटों शून्य में जाने क्या देखती रहती..........वो जो कभी लोगों के लिए ख़ुशी और उल्लास का पर्याय थी............आज गम में अन्धकार में खो गयी............ईश्वर इतना निर्दयी कैसे हो सकताहै............क्या इस दुनिया में उसका हाथ थामने वाला कोई नहीं आया.........

आखिरकार उस विधाता का दिल भी पसीज ही गया..........उसके जीवन में एक शख्स आशा की किरण बन कर आया...........उसने लड़की को अन्धकार की गर्तों से बाहर निकला..........उसका हाथ थाम कर उसे जिन्दा होने का एहसास दिलाया.........दुनिया के आगे उसकी ढाल बन कर खड़ा हो गया...........उसके खिलाफ बोलने वालों के आगे उसकी अच्छाइयां गिना कर उन लोगों को खामोश कर दिया...........उसके खुले दिल से किये गए कामों को याद दिला कर उनकी जबानों पर ताले जड़ दिए..........उसमें छुपे हुनर से उसकी फिर से पहचान कराई...............धीरे धीरे उस में फिर से आत्मविश्वास की बेल जड़ पकड़ने लगी..........उसके चेहरे पर फिर से रौनक लौटने लगी..........अकेलेपन का बोझ मिटने लगा...........जीवन में ढेरों रंग बिखरने लगे............खुशियों की बरसातें होने लगी...........उसने अपने आप को उस शख्स की नज़र से देखा तो पहली बार खुद में छुपी अपनी ही असल शख्सियत से रूबरू हुई...........खुद को पहली बार पहचाना...........उसके साथ ने उसमें नयी जान डाल दी...............

अब वो उसके साथ अपने संसार में खुश है..........दोनों के बीच का ये खूबसूरत रिश्ता दिनों दिन और भी निखरता जा रहा है..........वो अब खुश रहती है...........घुटन भारी जिन्दगी बहुत पीछे छूट गयी है............दुःख तकलीफों की बातें पुरानी हो गयी हैं...........खुले दिल से खिलखिला कर हंसती है वो.............जिन्दगी को सच में जीने लगी है अब.............वो लड़की.......


Tuesday, December 14, 2010

लौट आओ......

लौट आओ कहाँ हो............. तुम बिन मेरी जिंदगी कितनी रीती रीती सी है...........कोई रंग नहीं कोई रौनक नहीं...............सब फीका सा बेमानी सा लगता है.............तुम कहाँ चले गए हो.........क्यूँ रूठे हो..........मुझसे यूँ रूठने की तुम्हारी आदत तो बड़ी पुरानी है............ज़रा ज़रा सी बात पर रूठ जाना और फिर मेरा तड़प कर तुमको मानना............यह सिलसिला उतना ही पुराना है जितनी तुम्हारी मेरी पहचान...............पर इस बार यूँ रूठ जाओगे मैंने सोचा भी न था...........एक बार मान जाओ.........एक बार आजाओ..........आके बता तो जाओ कि मेरी भूल क्या है............मुझसे क्या गलती हो गयी जो तुमने मुझे यूँ अपने से दूर रहने की सज़ा देदी........कितने साल हमने साथ साथ गुजारे हैं..............तुमको मेरी छोटी छोटी बातों का मेरी हर जरूरत का कितना ख्याल रहता था..........तुमको पुकार भी न पाती थी और तुम मेरे सामने होते थे...............तुम थे तो कभी जिंदगी में किसी और की ज़रुरत ही नहीं पड़ी..........कभी किसी को एहमियत ही नहीं दी...............कभी किसी और से जुडी ही नहीं.............. मुझको तुम्हारी आदत हो चुकी है...........कि अब तुम्हारे बिना जीना बड़ा ही दुश्वार लगता है............तुम ही तो मेरी जिंदगी कि धुरी थे.............. पर आज तुम मुझे यूँ छोड़ कर क्यूँ चले गए.............क्या तुमको मेरी याद नहीं आती...........क्या तुमको अब मेरा ख्याल नहीं................क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल होगा..........हमारा रिश्ता इतना कमजोर तो कभी न था कि हालात की एक हलकी सी आंधी उसको यूँ बिखेर दे.........वो जादूगर की कहानी याद हैं न जिसकी जान उसके तोते में रहती थी ..........तुम जानते हो न कि बस वैसे ही तुम में मेरी जान बसती है..........अब जब तुम नहीं हो तो मैं भी बेजान सी हो गयी हूँ ........तुम्हारे बिना मैं कितनी अकेली हो गयी हूँ...........तुम जानते हो न कि मेरे दिल और मेरी जिंदगी में तुम्हारी क्या जगह है...........फिर तुम ऐसा क्यूँ कर रहे हो..........क्यूँ मुझसे इतनी दूर चले गए हो..........कहाँ हो वापस चले आओ.........लौट आओ...........

मैं हार गयी...........

अपने आप को हारा हुआ महसूस कर रही हूँ...........ये जिंदगी ने मुझे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दियाहै.........मेरे अपने अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है............तुमको लगता है कि मैं तुमसे दूरियां बढ़ा रही ......... ..............ये कहना कि ऐसा नहीं है........पिछले दिनों तुम्हारी बातों में मुझको इसका इशारा मिल गया.............हालांकि ये सही है कि तुमने कभी खुले शब्दों में ये बात नहीं कही..........सच कहूं तो मैं तुमसे दूरी नहीं बना रही..........तुम मुझे उतने ही करीब और अपने लगते हो जितने पहले.........जब तुम मुझे मिले तो मैं बड़े अज़ाबों में घिरी थी...........टूट कर बिखरने की कग़ार पर थी.............जिंदगी में ऐसे धक्के खाये थे कि संभलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पारही थी.............ऐसे में तुम मेरी जिंदगी में आये.............मैं बड़े अचरज में थी.............अपने दिल का जो दर्द मैंने बड़ी मेहनत और सफाई से सारी दुनिया से छुपाया था..........जिसे मेरे करीब रहने वाले भी जान पाए..............उसे तुमने चंद मुलाकातों में ही कैसे पढ़ लिया...........जल्दी ही मुझको इसका जवाब मिल गया............जब मुझे ये पता चला कि तुम भी उसी दर्द से गुज़रकर आए हो जिसमें मैं डूबी थी...............फिर तो हमारे बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया..............दर्द का रिश्ता.............जिसका कोई नाम नहीं.............जिसे कोई नाम दिया भी नहीं जा सकता.............जो सभी दुनियावी रिश्तों से कहीं ज्यादा गहरा ख़ूबसूरत और पाक़ थाइस रिश्तें में कोई बंधन थे.......... औपचारिकता और ही अपेक्षाएं.............मैंने अपनी जिंदगी का हर पन्ना तुम्हारे सामने खोल कर रख दिया..........तुमने भी अपना हर दर्द मुझसे बांटा..............तुम से मिल कर मैं जी उठी..............वो तुम ही थे जिसने मुझे मेरे अपने ही वजूद का एहसास कराया..............तुमने मेरा जीवन खुशियों से भर दिया............इतनी खुशियाँ दी कि वो मेरे आँचल से छलकने लगीं...............मैं तो मैं मेरे आस पास रहने वाले भी इस बरसात से सराबोर होने लगे..............तुम धीरे धीरे मुझे इतने अपने लगने लगे कि मैं जाने अनजाने हर समय उपरवाले से तुम्हारे लिए चैन और सुकून की दुआ करने लगी............हर पल यही कोशिश रहती कि ऐसा कुछ करूं जो तुमको उन दर्द भरी यादों से राहत दिलाये.............जो भी मेरे बस में था मैंने किया.............जो भी मुझे ठीक लगा मैंने किया.............तुमको हँसते बोलते देख कर लगने लगा कि तुम अब उन तकलीफों के पाश से निकलने लगे हो............तुम्हारी बातों में कड़वाहट धीरे कम होने लगी..............मुझको लगा कि शायद अब यहाँ फिर से प्यार और चैन के बीज फूटेंगे ............पर मुझसे जाने कहाँ कमी रह गयी...........उस दिन मुझे मेरी हार महसूस हुई.............जब मेरे किसी सवाल के जवाब में तुमने फिर से अपने अतीत को फिर से याद किया...............उन सब बातों को फिर से दोहराया...............मुझे तकलीफ इस बात की नहीं कि तुमको वो सब बातें याद हैं.............वो सब लोग याद हैं............ये उम्मीद कभी नहीं की कि तुम सब कुछ यूँ ही भूल जाओगे.............जानती हूँ समझती हूँ................ इतनी गहरी चोट का असर इतनी आसानी से नहीं जाता............मुझे तकलीफ इस बात से हुई तुम उन बातों को आज भी उसी शिद्दत से याद करते हो..............चोट का एहसास अब भी उतना ही है...........दर्द कि गहराई अब भी उतनी ही है..............दिल की तड़प वैसी ही है............आक्रोश भी उतना ही है............ये सब देख कर मैं सोच में हूँ जिसने मेरी जिन्दगी में इतनी मिठास भरी में उसकी जिंदगी से कड़वाहट के चंद कतरे भी कम कर पायी..............क्या हक है मुझको तुम्हारी दोस्ती पर......... इस रिश्ते पर............मेरे करीब होने का क्या औचित्य है..........मेरे दूर रहने से क्या फर्क पड़ता है.............मैं तुम्हारे लिए कुछ कर पायी............मुझे माफ़ कर दो..........मैं इस रिश्ते की कसौटी पर खरी उतर सकी............मैं हार गयी।

Thursday, July 29, 2010

विदाई.....

ट्रेन धीमे धीमे सरकती हुई स्टेशन छोड़ रही है........इंजन की तेज़ सीटी सी एक गहरी टीस दिल में उठी..........काश मैं पापा मम्मी का बेटा होती तो मुझे भी हमेशा उनके साथ रहने का अधिकार मिला होता......यूँ इस उम्र में उनको अकेला छोड़ना पड़ता..........मम्मी को फ़ोन लगाया.....मम्मी ट्रेन चल दी है.........पहुँच कर फ़ोन करूंगी.........उधर से मम्मी कि आवाज़ आई........ठीक से बैठ गयीं.......बच्चे ठीक हैं........आराम से तो हो........कुछ पल का मौन........मैंने कहा.......मम्मी.......आगे कुछ कह पायी......कुछ पल फिर से मौन में बीते.......फिर मम्मी ने कहा........बिटिया तुम मेरा घर सूना कर के चली गयी........आज दिल वैसा ही हो रहा है जैसा तुमको पहली बार विदा करते समय हुआ था...........पिछले दो हफ्ते तुम दोनों और बच्चों से घर में कितनी रौनक थी......आज तुम्हारी गाड़ी गली में मुड़ी........मैं और पापा पलट कर घर में घुसे तो एक धक्का सा लगा...........सब खाली खाली सा........जहाँ नज़र जाती हैं तुम लोगों कि ही कोई बात याद आजाती है.......फिर बोली लो पापा से बात करो.......मैंने पापा को अपना और मम्मी का ध्यान रखने के साथ साथ और भी ढेर सारी हिदायतें दे डाली........उधर से पापा हमेशा की तरह अपनी संयत आवाज़ में बोले....ठीक है.......अपने ध्यान रखना और पहुँच कर फ़ोन करना अब रखो...........पिता हैं कैसे जताते.......पर मैं उन दोनों के दिल की पीड़ा से उनका ही अंश हो कर भला कैसे अनजान रह सकती हूँ.....आखिर मेरा दिल भी तो उसी पीड़ा से फटा जा रहा है...........
फ़ोन काट दिया........आँखें बंद कर के सर को पीछे टिका पिछले बारह दिनों को एक एक पल कर के फिर से जीती रही........अचानक एहसास हुआ कि आँखों से आसूँ बह रहे हैं.........हड़बड़ा कर उनको पोछा........इधर उधर देखा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं........नज़र बच्चों पर पड़ी.......उनको देख कर मैं जैसे वर्तमान में आगयी .........मायका पीछे छूटता जा रहा है..........धीरे धीरे घर के काम याद आने लगे.........कहाँ से शुरू करने है..........क्या क्या करना है.........दिल पर हाथ रख कर अपने आप से कहा............यही ज़िंदगी है..........
आँखें अब सूख चुकी हैं.........दिल अब भी भारी है...........ट्रेन अब अपनी पूरी रफ़्तार से दौड़ी जा रही है






Saturday, April 24, 2010

तुमसे जलती हूँ मैं.............खुद पर इतराती भी हूँ !!!!!!

पता है मैं तुमसे जलती हूँ ..........सोचते होगे कि क्यूँ भला, मैं तुमसे क्यूँ जलने लगी.........बताऊँ ???? उस दिन जब मैंने तुमसे पूछा था कि क्या तुमको कभी इस बात की खुशी नहीं होती की कोई इस दुनिया में ऐसा है जो तुमसे बहुत प्यार करता है...........कोई दिल है जो सिर्फ तुम्हारे लिए ही धड़कता है....क्या तुम्हे इस बात पर झूमने का मन नहीं करता की कोई तुम्हारा दीवाना है.........मुझे याद है तुमने कहा था........मैं सब सुनता हूँ और मेरी समझ में सब आता है........मुझे सब पता है..........पर मैं अपने पाँव जमीन पर रखता हूँ.............
सच में बड़ी जलन हुई मुझे तुमसे.......तुम ऐसा कैसे कह सकते हो उससे भी ज्यादा ऐसा कैसे कर लेते हो...............दिल में प्यार भरा हो और कोई प्यार भरा दिल आपके लिए धड़कता हो..........आप सब जानते भी हो फिर भी पाँव जमीन पर रखते की काबिलियत है तुममें. कितना फर्क है तुममें और मुझमें.........पता है........यह सोच कर मैं अपने पर इतराती भी हूँ............अब सोचते हो कि वो भला क्यूँ...........यूँ भी मुझे बंधन अच्छे नहीं लगते.........तुमनें देखा है उड़ती फिरती हूँ अपने ही ख्यालों में........मेरी दुनिया में आसमान की कोई हद नहीं है इसलिए मैं जितना ऊँचा उड़ना चाहूँ उड़ सकती हूँ.......अपने पंखो को जितना चाहूँ पसार सकती हूँ.............जहाँ चाहूँ जब चाहूँ जा सकती हूँ मुझे कोई नहीं रोक सकता.......कभी कभी तो अपने ही आप पर रीझ जाती हूँ कि जिसके लिए दिल की हर धड़कन है............जिसकी खुशबू से मेरी हर सांस महकती है............उसके दिल में भी मेरे लिए प्यार ही प्यार है......यह ख़याल ही मेरे पांवों को जमीन पर टिकने नहीं देता
यह मत समझना कि मुझे ज़मीन की जरूरत का एहसास नहीं है........मुझे पता है कि एक दिन मुझे भी इसी मिट्टी में मिल जाना है........इसीलिए मैंने इसका एक छोटा सा टुकड़ा अपने पांवों के बीच फंसा रखा है...........जो मुझे हमेशा याद दिलाता रहता है की यही वह जगह है जहाँ आखिरकार मुझको आराम मिलना है.........क्योंकि मेरी दुनिया में सब कुछ है बस सुकून ही नहीं है.........प्यार जो करती हूँ..........अब एक दिल में या तो प्यार रह सकता है या फिर सुकून.......अब जब यह दिल प्यार से भरा है तो सुकून कहाँ से लाऊँ???
सच है मैं तुम्हारी तरह नहीं सोच सकती..............मैं व्यवहारिकता में अभी भी कच्ची हूँ..........पर तुम्हारी जिन्दगी का फलसफा जो मैंने देखा है और सुना है............उससे मैंने भी कुछ सीखा है......शायद तुम ठीक ही कहते हो
तुम मुझे जो भी समझाते हो........मैं हर बात बड़े ध्यान से सुनती हूँ..........समझने की कोशिश भी करती हूँ.........अक्सर तुम्हारी और मेरी सोच मेल नहीं खाती..........पर अगर तुम कहते हो तो वो सही ही होगा। इसीलिए मैंने अपने दिल की एक डोर तुम्हारे पांवों तले की जमीन से बाँध दी है...........जब मैं उड़ते उड़ते थक जाऊं..........भटकते भटकते गुम हो जाऊं जब मेरी रूह को सुकून की जरूरत हो तब तुम्हारे नेह की यही डोर मुझे तुम तक ले आये..........क्योंकि जब एक दिन इस जमीन पर आना है तो क्यूँ जमीन के उसी हिस्से में आके मिल जाऊं जहाँ तुम्हारे पाँव पड़ते हैं............मेरी खाक के लिए इससे बेहतर जगह और कोई हो सकती है भला ????
मैं आज जरूर अपनी ख्वाहिशों के आसमान में उड़ रही हूँ.........पर मुझे यकीन है कि जिस दिन मेरी थकन को जमीन की जरूरत होगी तुम अपने पांवों को थोड़ा सा हटा कर अपनी जमीन पर मेरे लिए ज़रा सी जगह बना ही लोगे....................
एक बात पूछूं ?? कहीं अब तुमको तो मुझसे जलन नहीं होने लगी है.............






Friday, April 23, 2010

थोड़ा सा जी लेने दे..........

बड़ी घुटन सी हो रही है.........मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूँ........जिंदगी ने तहज़ीब, रस्मों रवायतों और फर्ज के इतने लबादे मेरे ऊपर लपेट दिए हैं कि मैं उनके बोझ तले दबी जा रही हूँ........मैं भूलती जा रही हूँ कि मैं कौन हूँ क्या हूँ, सारा दर्द दिल में जमता जा रहा है..........देखने वालों को लगता है कि ऐसा भी क्या हो गया है जो यह हमेशा दर्द की ही बातें करती है..........उनकी गलती नहीं..........किसी के दिल में झाँक कर उस की गहराइयों तक पहुँच पाना, छुपे हुए एहसासों के दरवाजे खोल पाना आसान काम नहीं है...........वो भी तब जब उस पर दिखावे के तबस्सुम के तालें जड़े हों.......
समझ में नहीं आता!! तू मेरी ही जिंदगी है ........सिर्फ मेरी........फिर भी मेरा तुझ पर कोई इख्तियार नहीं.....क्या फर्क है तुझमें और दुनिया वालों में......... वो मुझसे पूछते हैं कि मैं क्या चाहती हूँ........... तू कभी यह देखती है कि मैं किन उम्मीदों के साथ तेरी तरफ देख रही हूँ............या तू सब समझ कर भी अनदेखा कर देती है..........मानाकि तुझे उस ऊपरवाले ने बनाया है............तेरे वज़ूद का एक एक लम्हा खुदा ने खुद अपने हाथों मेरी तकदीर की कलम से लिखा है........जिसे उसके आलावा कोई भी बदल नहीं सकता......तू भी नहीं........पर तू मेरे लिए उससे एक गुजारिश तो कर ही सकती है........कर सकती है ??????
मैंने तो अपनी तरफ से हमेशा तुझे सवाँरकर सलीके से रखने की कोशिश की है......अब तक तुझसे कुछ भी नहीं माँगा..........क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती ? मेरी ओर से उससे एक बार इतनी इल्तजा कर के तो देख, शायद वो मान ही ले......मुझे बस कुछ पल दे दे............ज्य़ादा की हसरत नहीं है...........कुछ छोटी छोटी तमन्नाएँ जग गयी हैं........बस कुछ पल चैन की सांस ले लूं........कुछ पल आँख बंद करूं और मेरे दिल की तड़प को थोड़ा सा सुकून आजाये...........बस दो चार धडकनें थम थम के आहिस्ता से आजाये..........इन्तजार से थकी बोझिल नज़रों में वस्लेयार से थोड़ी सी चमक आजाये...........कई दिनों से जागती हुई रातों में कुछ पल के लिए नींद आजाये........बस इतना ही......मेरी ख्वाहिशें ज्यादा ऊंची नहीं हैं कि तू चाहे और पूरा ही कर पाए............बस कुछ देर के लिए रस्मों रवायतों का वास्ता दे.........फर्ज की बेड़ियाँ पहना.........कुछ देर के लिए इनके लबादे उतार लेनेदे.......... मेरी जिन्दगी इतना तो करेगी मेरे लिए.........बस इतना.........तेरी कसम फिर कुछ मांगूगी....कुछ चाहूंगी
बस कुछ देर जीना चाहती हूँ..........थोड़ा सा जी लेने दे।

Sunday, April 18, 2010

मॉम यू आर टू गुड..............;;




शीर्षक से ही समझ गए होंगे कि मैं बच्चों की बात कर रही हूँ। जी सही समझा। कल मैं अपने कम्प्यूटर पर कुछ टाइप कर रही थी...........पता ही नही चला कि मेरे बेटे मेरे पीछे खड़े बहुत ध्यान से देख रहे हैं। ऐसा आम तौर पर होता नहीं है क्योंकि कुछ मिनट तो क्या कुछ पल भी वो शांत नहीं रह सकते। इसलिए आप एक ही जगह बैठे बैठे पता लगा सकते हैं कि वो घर के किस कोने में हैं............और अगर वो घर में हैं साथ ही कोई शोर नहीं है तो मतलब कि कहीं कुछ गड़बड़ है.........कहीं कुछ खुराफात चल रही है.............ऐसे वो दोनों आपको हमेशा सोफे की बैक पर, कुर्सी के नीचे, अपने बंक बेड पर उलटी तरफ से चढ़ते, कार से दरवाजे की जगह खिड़की से बाहर आते ...............या इसी तरह की गतिविधियों के साथ मिलेंगे............अनगिनत है गिनाने बैठी तो जाने यह पोस्ट कभी पूरी ही न हो पाए। हाँ तो अब मुख्य बात पर आती हूँ...........मैं कुछ टाइप कर रही थी और अचानक दोनों मेरे पीछे से आकर मुझ से लिपट गए...........एक स्वर में बोले मम्मी य़ू आर टू गुड...........फिर ढेर सारी फ़्लाइंग किस मेरी और उछाल दी मैं भौचक्क उनको देखती रही ..........मेरी समझ में ही नहीं आ रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो मेरे बेटे अपनी माँ पर इतना रीझ रहे हैं...............मैंने पूछा हुआ क्या.........तो बोले मम्मी तुम तो हमारी मैम से भी ज्यादा इन्टैलिजेंट हो, मैंने पूछा कि भला वो कैसे......तो वो बोले मम्मी हमारी मैम तो कंप्यूटर में केवल A B C D ही लिख पाती हैं पर तुम तो A B C D के बटन से क ख ग घ भी लिख लेती हो ...........रीयली मम्मी यू आर टू गुड........ बच्चों के इस भोलेपन पर मैं मुग्ध हो गयी.............
अपने बच्चों के साथ इनके बचपन का एक एक पल जीने और उसको सहेज कर रखने की कोशिश करती हूँ कुछ यादों में, कुछ डायरी और कुछ फोटों में ......जाने कल वक़्त और जिंदगी उन्हें कहाँ ले जाए ..........पर उनका यह बचपन सदा सदा मेरे मन में ताज़ा रहेगा। मेरे नन्हों की कुछ कारगुजारियां.............

बंक बेड पर चढ़ कर छत पर की गयी चित्रकारी..


नयी कार पर पत्थर से खुरच कर की गयी कारीगरी॥




मेरे बीमार पड़ने पर बनाया हुआ Get well soon कार्ड