लिखना, पढ़ना, सोचना और सोचते रहना.......फिर से कुछ लिखना, लिखा हुआ पढ़ना......और फिर......यह अनवरत सफ़र है.......कभी कभी लगता है मैं किसी और दुनियां में हूँ मेरी अपनी ही दुनिया.........जहाँ विचारों को आने जाने की कोई रोक टोक नहीं..........जहाँ विचारों के साथ कभी भी कोई भी आजाता है.........उनसे कभी कुछ कह लेती हूँ कभी कुछ सुन लेती हूँ.........वही सब कहा सुना........यूँ ही कभी कभी लिख देती हूँ।
2 comments:
वाह , क्या बात है ...... ये भी प्रेम का एक रूप है .
शुक्रिया संगीता जी
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