Sunday, December 19, 2010

वो लड़की.......

लड़की बन कर पैदा होना ही शायद. एक अभिशाप है जन्म से ही नीयति कदम कदम पर परीक्षाओं के जाल बिछाती चली जाती है......जिन्दगी हर मोड़ पर ढेरों लक्ष्मणरेखाएं खींच देती है......इन सब से जूझते हुए अपने स्व को बचा कर जीना ही औरत का भाग्य है

वो भी जिन्दगी के इस खेल से अछूती रह सकी......वो......वो लड़की!!!

उसका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ.........बाप दादा का नाम दूर दूर तक मशहूर था.......उसका जन्म माँ पिताजी की बरसों की प्रार्थनाओं का फल था इसीलिए उसके लड़की होने पर यूँ तो किसी ने प्रतिक्रिया की पर पर वो बेटा तो थी...........वो थी माँ पिताजी की लाडली.......जो चाहती मिल जाता.......पर जीती नज़रों के सख्त पहरे में थी...........शहर के नामी स्कूल में नाम लिखाया गया........जिन्दगी घर से स्कूल और स्कूल और घर के बीच सीमित रही........न दोस्तों के घर जाने की छूट ही ही उनको घर बुलाने की..........सच पूछो तो उसको दोस्त बनाने की ही इजाज़त थी......बस उसके गुड्डे गुडिया और खिलौने ही उसके संगी साथी थे........अक्सर वो अपने इस अकेलेपन से घबराकर रो पड़ती ........

समय
गुजरता गया........खिलौनों से खेलने की उम्र पीछे छूट गयी...........माँ घर गृहस्थी के काम सिखाने लगी..........घर में बैठे बैठे ढेरों हुनर हाथों में आगये........पर अकेलापन अब भीही.........अब उसके साथी बदल गए.........गुड्डे गुड़ियाँ अलमारी की शोभा बन गए और हाथों में किताबें और कलम आगये.........पढने लिखने के नए शौक ने उसमें कुछ संतोष भर दिया.........पर ह्रदय और ह्रदय की भावनाएं कब किसी बंधन को मानती हैं...........डरते झिझकते उसने भी अपने घर की चहारदीवारी के पार कि दुनिया में बिखरे रंगों को देखने कि कोशिश की..........पर वो तो ठहरी लड़की........उसकी नन्ही सी चाहत पूरा होना भी उसको बदा था..........जाने किसकी बुरी नज़र उसको लगी जो निर्दोष पर ऊँगली उठा दी गयी...........वो कुछ समझ भी पायी उससे पहले ही उसपर तमाम बंदिशों का बोझ लाद दिया गया.............पंछी के उड़ने से पहले की पंख काट दिए गए...........फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया..........जीवन के इस आघात ने उसको तोड़ कर रख दिया............अंजानो ने जो किया उसका ज्यादा गिला नहीं था उसे........पर चहारदीवारी की कैद में भी उसकी चौकीदारी करती अपनों की नज़रें वो बर्दाश्त कर पाती...........उसकी आत्मा लहूलुहान हो गयी.............पर किसी के पास उसकी पीड़ा का कोई मरहम था..........

तकलीफें जब कुछ कम हुई तो उसने जीने के नए रास्ते खोजने शुरू किये.........बड़े मान मनुहार के बाद घर से ही पढाई पूरी करने की इजाज़त मिली.........सब कुछ भुला कर अपने आप को किताबों में झोंक दिया..........उसकी मेहनत और नतीजों ने माँ पिताजी का मन कुछ पिघला दिया.........आगे पढ़ाई की राह मिल गयी.........पर इस सब ने उसको इतना बदल दिया कि वो समय से पहले ही बड़ी हो गयी.........अपने हमउम्र के बीच भी सदा संजीदा ही दिखती......... साज सिंगार ही कोई उत्साह............ऐसा लगता जैसे अपने आप को ढो रही है...........

समय के साथ हर किसी की सच्चाई सामने आही जाती है..........माता पिता के सामने उन लोगों की हकीकत भी आगई जिनके बुने ताने बाने में वो उलझ गए थे.........जिनकी बातों में आकर उन्होंने अपनी ही बेटी पर सवाल उठा दिए थे.........और अपनी उस बेटी ही सच्चाई भी उनकी आँखों के सामने थी..........जिसने चुपचाप उन सभी गलतियों की सजा भुगती जो उसने कभी करी ही नहीं थी..........जो बीत चुका था उसको बदला तो नहीं जा सकता था..........

समय
का पहिया और आगे बढ़ा..........नए नए लोग मिले नए रिश्ते जुड़े...........अब वो हंसती थी बोलती थी...........सजती संवारती भी थी..........उसकी छवि एक खुशहाल और हंसमुख लड़की की थी...........लोग उसके साथ बड़ी जल्दी घुलमिल जाते........वो भी उनको अपना समझ उनपर अपनी जान लुटाती रहती.........अब उसके आस पास लोगों की भीड़ थी............पर उस भीड़ में उसको समझने वाला अब भी कोई नहीं था.........कोई भी ऐसा था जो उसमें उसको केवल उसको देखता.......सब अपने अपने नज़रिए अपनी अपनी ज़रुरत की नज़र से उसको देखते और समझते थे...........वो भी उन्हें यही समझने देती..........वो अब भी अकेली थी..........भीतर की घुटन अब भी दिल की गहराइयों में जमी थी..........उसके दिल में छुपे इस दर्द को कोई नहीं जानता था.........किसी को कभी कोई भनक ही हुई कि इस हँसते मुस्कराते चेहरे के पीछे आंसुओं के समंदर छुपे हैं..........

जिन्दगी के अनुभवों ने उसको बहुत संवेदनशील बना दिया...........कोई जरूरत में है.........किसी को कोई तकलीफ है........उसकी नज़रों से बच नहीं पता..........और जब उसकी नज़र पड़े जाए फिर कोई आभावों में रह नहीं सकता..........उससे जो बन पड़ता वो करती.........जो खुद नहीं कर पाती उसके लिए दूसरों से मदद माँग लेती..........उसकी शख्सियत के इस पहलू ने उसको बड़ा नाम दिया.............बहुत लोग उसके करीब आते गए........सब अपने अपने तरीके से उससे अपनी भावनाए अपना प्यार जताते..........कोई भाई बन के खड़ा था तो कोई बहन...........कोई उसको अपना दोस्त कहता तो कोई उसको माँ का दर्जा देता..........जिन्दगी खुशहाल लगने लगी.............पर क्या जो दिख रहा था वो सच था..........

नीयति
कभी उसके लिए रहमदिल साबित न हुई..............एक दिन हकीकत के पार का सच सामने आ ही गया...........एक दिन जब फिर से उसकी अच्छाई पर सवाल उठाये गए............उसकी नीयत पर शक किया गया..........तब उसने अपने चारों ओर अपनों की भीड़ की ओर उम्मीद से देखा...........जब उसको लोगों की जरूरत पड़ी तो
तो उसको ये माँ बहन या दोस्त कहने वाले कहीं नज़र नहीं आये.........

वो सब उसी भीड़ में गुम हो गए जो तमाशाई बन के उसके चारों ओर खड़ी थी..........उस भीड़ में उसका कोई नहीं इस बात का गम तो कम था जो बात दिल में नश्तर सी चुभती थी वो यह कि जिन पर वो दिल ओ जान लुटाती रही वो उसी भीड़ का हिस्सा बने नज़र आ रहे थे...............पीड़ा सहनशक्ति की सीमा लाँघ चुकी थी............वो जो सबके जीवन में रंग भरती रही........सब के दुःख सुख बाँटती रही..........आज दर्द के सागर में डूब गयी थी.............रिश्तों पर से उसका विश्वास उठगया..........उम्मीदों ने उसका साथ छोड़ दिया..........अकेलेपन से जयादा भयावह अकेलेपन का एहसास होता है...............वो इसी एहसास से घबरा गयी...........दिल और दिमाग के बीच..........देखने और समझने के बीच के समन्वय बिगड़ गए...........लोगों और आवाजों से परिचय ख़त्म हो गया..........वो बिलकुल खामोश होगयी..........चुपचाप घंटों शून्य में जाने क्या देखती रहती..........वो जो कभी लोगों के लिए ख़ुशी और उल्लास का पर्याय थी............आज गम में अन्धकार में खो गयी............ईश्वर इतना निर्दयी कैसे हो सकताहै............क्या इस दुनिया में उसका हाथ थामने वाला कोई नहीं आया.........

आखिरकार उस विधाता का दिल भी पसीज ही गया..........उसके जीवन में एक शख्स आशा की किरण बन कर आया...........उसने लड़की को अन्धकार की गर्तों से बाहर निकला..........उसका हाथ थाम कर उसे जिन्दा होने का एहसास दिलाया.........दुनिया के आगे उसकी ढाल बन कर खड़ा हो गया...........उसके खिलाफ बोलने वालों के आगे उसकी अच्छाइयां गिना कर उन लोगों को खामोश कर दिया...........उसके खुले दिल से किये गए कामों को याद दिला कर उनकी जबानों पर ताले जड़ दिए..........उसमें छुपे हुनर से उसकी फिर से पहचान कराई...............धीरे धीरे उस में फिर से आत्मविश्वास की बेल जड़ पकड़ने लगी..........उसके चेहरे पर फिर से रौनक लौटने लगी..........अकेलेपन का बोझ मिटने लगा...........जीवन में ढेरों रंग बिखरने लगे............खुशियों की बरसातें होने लगी...........उसने अपने आप को उस शख्स की नज़र से देखा तो पहली बार खुद में छुपी अपनी ही असल शख्सियत से रूबरू हुई...........खुद को पहली बार पहचाना...........उसके साथ ने उसमें नयी जान डाल दी...............

अब वो उसके साथ अपने संसार में खुश है..........दोनों के बीच का ये खूबसूरत रिश्ता दिनों दिन और भी निखरता जा रहा है..........वो अब खुश रहती है...........घुटन भारी जिन्दगी बहुत पीछे छूट गयी है............दुःख तकलीफों की बातें पुरानी हो गयी हैं...........खुले दिल से खिलखिला कर हंसती है वो.............जिन्दगी को सच में जीने लगी है अब.............वो लड़की.......


2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सूक्ष्म अवलोकन ..अच्छी प्रस्तुति

Er. सत्यम शिवम said...

nice....dil ko chu gaya