Sunday, September 21, 2008

मैं कौन हूँ ?????

मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ? क्यों हूँ ? इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते ढूंढते अपने अन्तर को खंगालती रहती हूँ ? बहुत कुछ मिलता भी है बेचैनियाँ, तन्हाइयां, हसरतें, टूटे हुए सपने, ढेरों निराशा। मन उदास सा हो जाता है। सारे विचार इधर उधर हो जाते हैं, आंखों के आगे सारे शब्द तैरने लगते हैं ,एक एक अक्षर बिखर जाता है, तभी उनमें से कुछ अलग हो कर चमकने लगते हैं और जुड़ कर कुछ नए शब्द बनाते हैं, फ़िर एक बिजली सी कौंधती है ..... हलचल सी होती है .... वह चमचमाते, कौंधते हुए शब्द सुर ताल में नृत्य करते से लगते हैं। एक लय में बंधे घूमते घूमते अचानक ठहर जाते हैं। ध्यान से देखती हूँ तो उनमें कोई नई कविता कोई नई कहानी मिलती है और अपने भीतर के किसी कोने की परछाई दिखाई देने लगती है। कुछ मिल जाने की तसल्ली होती है। फ़िर ........ जाने कहाँ से वही बेचैनी चली आती हैं और मैं अपने भीतर कुछ और प्रश्नों के उत्तर ढूँढने में लग जाती हूँ। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है और चलता रहेगा। कब मिलेंगे मुझे मेरे जवाब ??????????????? जाने!!!!!!!!!!!!!

1 comment:

Shikha Deepak said...

This reminds me of the 3rd CD of Hubble Bubble by Revered Master.

Here He relates a dream that He had during early dawn and He felt that every morning when he wakes up, he feels like a man who has parked his car somewhere and he has to search and sit in this car and move on... Similarly, his Soul is in the infinite and on waking has to acclimatize itself to its current body and then move on...